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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फादर्स डे

मुझे रख दिया छांव में, खुद जलते रहे धूप में,  मैंने देखा है ऐसा एक फरिश्ता, अपने पिता के रूप में। ये पंक्तियां जाने कहाँ सुनी थी ये तो याद नहीं, पर इतना कह सकती हूँ कि हैं एकदम सही। सलाम दोस्तों। वैसे  तो हमारे समाज में माँ-बाप का स्थान पहले ही सबसे ऊंचा रहा है, परन्तु आजकल वैश्वीकरण के चलते  हम विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दिवसों को भी ख़ुशी-ख़ुशी मनाते हैं।इसी लिहाज़ से प्रत्येक वर्ष जून के तीसरे रविवार को 'इंटरनेशनल फादर्स डे' ( International father's day ) का दिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. क्या आप जानते हैं कि इस दिन  की शुरुआत कैसे हुई??? नहीं? चलिए मैं बताती हूँ।   इस दिन को मनाने के लिए एक बेटी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। दरअसल, 1909 में सोनोरा लुईश स्मार्ट डॉड (Sonora Louise Smart Dodd) नाम की एक 16 साल की लड़की ने पिता के नाम इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। सोनोरा, जब 16 साल की थी तब उसकी मां उसे और उसके 5 छोटे भाइयों को छोड़कर चली गईं थी। सोनोरा के पिता ने पूरे घर और बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।एक दिन सोनोरा ने 1909 में मदर्स डे के बार...

आखि़र क्यूँ?

आए दिन अखबार के किसी कोने में देखने को मिल रहे है। कभी किसी ने परीक्षा मे फेल होने पर फांसी लगाई तो किसी ने प्यार में नाकाम होने पर किसी ने खुद को आग के हवाले कर दिया। आजकल युवाओं के भीतर सहनशक्ति में भी अत्याधिक कमी देखी जा रही है. वर्तमान समय में लगभग सभी ओर प्रतिस्पर्धा हावी हो चुकी है, जिनमें असफलता व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देती है। ज़ाहिर है कोई व्यक्ति अपने सुनहरे सपनों और बहुमूल्य जीवन का अंत खुशी से नहीं करेगा. अगर वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं तो इसके पीछे उनकी कोई बहुत बड़ी मजबूरी  होती है. आधुनिक भागदौड के इस जीवन में कभी न कभी हर व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो ही जाता है। डिप्रेशन आज इतना आम हो चुका है कि लोग इसे बीमारी के तौर पर नहीं लेते और नजरअंदाज कर देते हैं। किन्तु ऎसा करने का परिणाम कभी कभी बहुत ही बुरा हो सकता है।काम की भागदौड़ में कई बार इंसान डिप्रेशन का शिकार हो जाता है यानी वह मानसिक अवसाद में आ जाता है। कई बार डिप्रेशन इतना अधिक बड़ जाता है कि व्यक्ति कुछ समय के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता है। पहले यह माना जाता था कि पारिवारिक...