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फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अजब प्रेम की गज़ब कहानियाँ

सलाम दोस्तों!  वेलेंटाइन सप्ताह चल रहा है तो ज़ाहिर है यहाँ बात उसी की करने वाली हूँ। इस सप्ताह में गाहे बगाहे अगर प्रेमी जोड़े देखने को मिल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं पर एक चीज़ जो आपको सोचने पर मजबूर कर देती है वो है इन जोड़ो की उम्र। जी हाँ, आजकल जो जोड़े दिखाई देते हैं उनकी उम्र इतनी कम होती है कि कभी कभी लगता है कि इनसे बात की जाए, इनकी मनोस्थिति को समझा जाए। महज़ पंद्रह सोलह साल की उम्र में साथ जीने मरने के ऐसे वादे कर लेते हैं जिनका ठीक से मतलब भी इन्हें पता नहीं होता। अक्सर एक चीज़ जो मुझे अंदर तक झकझोर देती है, वह है इनकी पीठ पर दिखाई देने वाले बस्ते।जी हाँ! स्कूल बैग्स या कहें कोचिंग बैग। अर्थ यह है कि ये बच्चे घर से पढाई के इरादे से निकले हैं या यूँ कहें कि इनके घरवालों ने इन्हें अपने सपनो को पूरा करने भेजा है,पर ये क्या! यहाँ तो कोई और ही सपने बुने जा रहे है।  क्या इन्हें सच में एहसास नहीं कि ये किस दलदल में फँसते जा रहे हैं?इसका जवाब है -हाँ। इन्हें वाकई नहीं पता कि इससे इन्हें क्या नुकसान है। अब सवाल ये आता है कि इनके इस राह पर जाने की वजह कौन है? कौन जिम्मेदार होग...

बदलती शिक्षा...

सलाम दोस्तों!  मैं कई दिनों से बदलती हुई शिक्षा प्रणाली को महसूस कर रही थी। ख्याल आया, क्यूँ न इस बात को लोगों से भी साझा किया जाए।        आज से कुछ दस साल पहले की बात याद करती हूँ तो सोचती हूँ कि जब मैं स्कूल जाया करती थी तब की किताबों में और आज की किताबों में कोई फर्क नहीं आया लेकिन पढ़ने और पढ़ाने के तरीके में बहुत फ़र्क आ गया है। हमारे टीचर हमें पढ़ाते थे,हमारी गलतियों पर नज़र रखते थे और बखूबी हमें सज़ा भी सुनाई जाती थी। हमारे बातचीत के तरीके पर हमें नसीहत दी जाती थी।  हमारे घर पर हमारे  घूमने फिरने,हमारी संगत  की रिपोर्ट दी जाती थी। शिक्षक को हमारी मरम्मत करने की पूरी आज़ादी होती थी।शिक्षकों से बातचीत का एक लहज़ा होता था।इस बात का कृपया ये मतलब न निकाले कि मैं आज के बच्चों को बदतमीज़ घोषित कर रही हूँ। न! बिल्कुल नहीं। मैं बस उस वक़्त को याद कर रही हूँ। मैं भी एक टीचर हूँ और इस बदलाव को महसूस कर रही हूँ। आज मेरे स्टूडेंट्स मुझसे बिल्कुल दोस्तों की तरह बात करते हैं। अपने दुख दर्द साझा करते हैं,सलाह लेते हैं, हँसी मज़ाक करते हैं और डाँटने पर रूठ...