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ये कैसी नफ़रत?

सलाम दोस्तों! कई दिनों से एक बात मन ही मन बहुत खटक रही है। आजकल कोरोनाकाल में काफी समय है तो अक्सर सोशल मीडिया पर कुछ समय बीत जाता है और एक चीज़ जो अक्सर मेरे साथ हो रही है वो ये कि बहुत से ऐसे लोग जिनसे मैं कई बार मिली हूं और जो सामाजिक सौहार्द की बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हैं, इतनी कि जिन्हें सुनकर ही आप उनकी बातों के कायल हो जाएं मगर जब वही लोग सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं को लिखते हैं तो किसी धर्म विशेष के बारे में इतनी अपमान जनक टिप्पणियाँ करते हैं कि अगर किसी व्यक्ति की भावनाएँ आहत हो जाएं तो न जाने ये ज़रा सी ज़हरीली बात क्या रूप ले ले। 
मैं यहाँ किसी एक धर्म के लोगों की बात नहीं कर रही।हर रोज़ देखती हूं, एक दूसरे को कमेंट्स में नीचा दिखाना,एक दूसरे के धर्म गुरूओं को अनाप-शनाप बोलना, किसी की मान्यताओं को बुरा भला कहना, किसी के त्यौहारों को बुरा भला बताना और भी न जाने क्या क्या। जब ये सब किसी अनजान द्वारा करते देखो तो उतना अचंभा नहीं होता परंतु जब कोई रोज़ का मिलने वाला हो या कभी एकाध बार मिला हो और हम उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए हों तो उनकी ये छोटी सी हरकत उन्हें एक पल में हमारी नज़रों में गिरा देती है। मैं पूछती हूं कि कौनसा धर्म हमें ये सिखाता है कि दूसरे धर्म को बुरा कहने से आप अच्छे कहलाएंगे। 
बताइए?
है कोई जवाब?
नहीं न!  क्यूँकि कोई धर्म ऐसी शिक्षा देता ही नहीं। और अगर आपके मन में इतना ही ज़हर भरा हुआ है तो ये सामने अच्छा बनने का नाटक क्यों? 
देखा जाए तो एक सच्चाई ये भी है कि लोग अक्सर जो बात सामने नहीं बोल पाते वह आजकल सोशल मीडिया पर लिख देते हैं। सोशल मीडिया हमारे लिए वरदान के साथ ही अभिशाप की तरह भी सामने आ रहा है। ठीक उसी तरह, जैसे पिछली सदी के नौवें दशक में अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन का देश में प्रचलन बढ़ा था जिसका मकसद बहुत नेक था कि गर्भावस्था के दौरान भ्रूण व माँ में किसी भी स्वास्थ्य समस्या का पता लगाया जा सकता था। लेकिन कुछ लोगों की कारगुजारियों ने इसे ‘किलिंग मशीन’ में तब्दील कर दिया। कहां तो इससे जान बचाई जा सकती थी, लेकिन होने लगा इसके उलट। देश के लिंग अनुपात में तेजी से गिरावट आने लगी। ठीक वैसे ही जैसे देश में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी की मौत की वजह बनते जा रहे हैं।

दरअसल सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है। देश में कई जगह दंगे फसाद होते हैं, हर देश में होते हैं। कारण व जरिया कई होते होंगे लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द पर सोशल मीडिया की तीली ने भी कम माचिस नहीं लगाई। दंगो से संबंधित गिरफ्तार आरोपियों से जब्त मोबाइल फोन इसकी तस्दीक करते हैं। जब्त फोन से कई समूहों का पता चलता है, जिसमें दंगा भड़काने के मकसद वाले वीडियो और अफवाह, झूठी खबरें, धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाले मैसेज बड़े पैमाने पर आदान-प्रदान किए जाते बल्कि कई बार तो ये मैसेज मुझे भी मिले हैं। 

लोग बगैर सोचे-समझे ही ऐसे पोस्ट को साझा कर देते हैं क्योंकि साझा करना ट्रेंड भी हो गया है और साहब वक्त भी कितना लगता है। और इन संदेशों में भाषा भी बिल्कुल ऐसी लिखी जाती है कि किसी के भी अंदर नफरत का बीज आसानी से बोया जा सके।

 दरअसल  सोशल मीडिया पर कई ग्रुप बने होते हैं। अक्सर ये ग्रुप किसी विचारधारा से प्रेरित होते हैं। यहां बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से फेक न्यूज बनाए और साझा भी किए जाते हैं। फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि सामाजिक सौहार्द के सामने सोशल मीडिया एक चुनौती बन कर खड़ा है। एक ऐसे समय में सोशल मीडिया एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका भी निभा सकता है। लेकिन क्या ऐसा हो पा रहा है।जी  नहीं!  धीरे-धीरे सोशल मीडिया में सही सूचना और अफवाह में अंतर मिटता जा रहा है।अब सोशल मीडिया पर भड़काऊ बातें लिखकर दंगा भड़काया जाता है। इतना ही नहीं, दंगा भड़काने के बाद उसकी आग में घी भी सोशल मीडिया द्वारा ही डाला जाता है। दरअसल सोशल मीडिया पानी की तरह है, जिसमें हम जैसा रंग डालेंगे, उसका वैसा ही रंग दिखेग

समझदारी पैदा करेंगे, तो समझदारी दिखेगी और विभाजनकारी तत्व डालेंगे, तो वैसा ही दिखेगा। सही मायनों में अच्छे और बुरे दोनों का ही आईना है ।भई मुझे तो इस बढ़ती हुई बीमारी का कोई इलाज नज़र नहीं आ रहा, अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो बताएं। बाकी मेरी तो इतनी सी गुज़ारिश है कि सोच समझ कर पोस्ट शेयर करें और नफरत न फैलाएं क्यूँकि जो आप देंगे वही आपको वापस मिलेगा। 

कमेंट्स में बताएं आपको ये ब्लॉग कैसा लगा। 

हुमा खान

@उड़ान



टिप्पणियाँ

  1. सच को कहना बहुत मुश्किल होता है।
    बहुत शानदार सच में दर्शन।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सही बात कही अपने अभी हमारे सामने जो covid 19 की समस्या है उसपर ध्यान देने की जरूरत है,

    लोगों को धर्म के आधार पर नही अपितु उनकी इंसानियत के आधार पर परखे 🙏

    जवाब देंहटाएं

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