सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संगत की रंगत

दोस्तों! हर इंसान के जीवन में कुछ न कुछ अनुभव तो होते ही हैं और उन अनुभवों में व्यक्ति के साथ कुछ लोग भी जरूर शामिल होते हैं। कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है या आपने ये भी सुना होगा कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है अर्थात संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।

अच्छी संगति से इंसान जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसको बर्बाद भी कर सकती है। माता-पिता के साथ-साथ बच्चे पर स्कूली शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई करके उच्च पदों पर पहुंच तो जाता है, लेकिन सही संगति न मिलने के कारण वह तानाशाह बन जाता है। अच्छे काम करके चाहे तो व्यक्ति ऐसा बहुत कुछ कर सकता है, जिससे उसका जीवन सार्थक हो सके, परंतु सदाचरण का पालन न करने से वह खोखला हो जाता है। हो सकता है कि चोरी-बेईमानी आदि करके वह पैसा कमा ले, कुछ समय के लिए दूसरों की नजरों में अच्छा दिख ले, परंतु उसे पता होता है कि उसने क्या किया है।। व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का तो भला होता ही है, साथ ही उसका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। जहां अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति अंधे कुए में गिर जाता है।

अच्छी संगति इंसान के दिल को सुकून देती है। वह हमेशा खुश रहता है। उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। संगति कैसी है, इस बात से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है। जीवन का हर कदम मायने रखता है। इसलिए उसे फूंक-फूंककर रखना चाहिए। अक्सर ऐसा देखने में आता है कि कुछ बच्चे स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन बुरी संगति में फंसकर नशा और कई बुरे कर्म करने लगते हैं। उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। वे झूठी चकाचौंध में फंसकर अपनी वास्तविक क्षमता को भी नहीं पहचान पाते हैं। कई बार सत्संगति न मिलने के कारण, सही वातावरण न होने के चलते बच्चा अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाता, जबकि सत्संगति से उसमें अटूट विश्वास जागता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के काबिल बन जाता है।
केवल बच्चे ही नहीं बड़े भी अगर ध्यान से देखें तो पाएंगे कि उनके चारो ओर ऐसे लोग जिनसे वे रोज मिलते हैं परंतु उन्हें देखकर वो अंदाज भी नहीं लगा सकते हैं कि वे कैसे व्यक्ति के साथ हैं । हमें उस व्यक्ति को जानने की कोशिश करने पर पता चलेगा कि हम किस तरह के लोगों के साथ काम करते है। केवल किसी बुरे व्यक्ति के होने भर से  हमारी जिंदगी पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । कई बार हमारा फैसला भी उस व्यक्ति के होने के कारण उतना सही नहीं होता जितना हम खुद की सोच से ले सकते हैं, तो सिर्फ बच्चों को ही नहीं बड़ो को भी सोच समझकर अपनी संगति बनानी चाहिए और अच्छे लोगो के साथ ही जीवन व्यतीत करना चाहिए ताकि हम भी अच्छे बने रहे।।

हमेशा की तरह हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।।

धन्यवाद
 हुमा खान
@उड़ान

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या मैं सही हूं?

सलाम दोस्तों! आज बहुत दिनों बाद लिख रही हूँ। आज बात करने वाली हूँ  हमारे फैसलों की जो हमारी जिंदगी पर बहुत असर डालते हैं। जिंदगी में न जाने कितनी बार हम खुद से ये सवाल पूछते हैं कि क्या हम सही है? है न!  तो आइए जानते हैं कि हम कैसे नतीजे पर पहुचें । अगर आप अपनी ज़िंदगी में कामयाब होना चाहते हैं तो आपके अंदर फौरन अपने फैसले लेने की हिम्मत होनी चाहिए। रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं, जब हमें जल्दी ही कोई फैसला करना पड़ता है। ऐसे वक्त पर फैसले का सही या गलत होना उतना मायने नहीं रखता  जितना फैसले का लिया जाना मायने रखता है। अगर आप सही समय पर फैसला नहीं कर पाते हैं तो कई मौके खो बैठते हैं। इसमें दो तरह की संभावनाएं रहती हैं। एक तो यह कि सही फैसला लिए जाने पर आपका फायदा होगा और दूसरा, गलत फैसला लिए जाने पर आपको एक सीख मिलेगी। अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से जीने के लिए फैसले लेने की कला में आपको माहिर बनना होगा। फैसला लेंगे तो जीवन में सफलता जरूर मिलेगी। इसके लिए कुछ इस तरह कोशिश की जा सकती है- •बहुत से लोग किसी भी फैसले को लेने से पहले उसके नतीजों और उससे...

बदलती शिक्षा...

सलाम दोस्तों!  मैं कई दिनों से बदलती हुई शिक्षा प्रणाली को महसूस कर रही थी। ख्याल आया, क्यूँ न इस बात को लोगों से भी साझा किया जाए।        आज से कुछ दस साल पहले की बात याद करती हूँ तो सोचती हूँ कि जब मैं स्कूल जाया करती थी तब की किताबों में और आज की किताबों में कोई फर्क नहीं आया लेकिन पढ़ने और पढ़ाने के तरीके में बहुत फ़र्क आ गया है। हमारे टीचर हमें पढ़ाते थे,हमारी गलतियों पर नज़र रखते थे और बखूबी हमें सज़ा भी सुनाई जाती थी। हमारे बातचीत के तरीके पर हमें नसीहत दी जाती थी।  हमारे घर पर हमारे  घूमने फिरने,हमारी संगत  की रिपोर्ट दी जाती थी। शिक्षक को हमारी मरम्मत करने की पूरी आज़ादी होती थी।शिक्षकों से बातचीत का एक लहज़ा होता था।इस बात का कृपया ये मतलब न निकाले कि मैं आज के बच्चों को बदतमीज़ घोषित कर रही हूँ। न! बिल्कुल नहीं। मैं बस उस वक़्त को याद कर रही हूँ। मैं भी एक टीचर हूँ और इस बदलाव को महसूस कर रही हूँ। आज मेरे स्टूडेंट्स मुझसे बिल्कुल दोस्तों की तरह बात करते हैं। अपने दुख दर्द साझा करते हैं,सलाह लेते हैं, हँसी मज़ाक करते हैं और डाँटने पर रूठ...