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संगत की रंगत

दोस्तों! हर इंसान के जीवन में कुछ न कुछ अनुभव तो होते ही हैं और उन अनुभवों में व्यक्ति के साथ कुछ लोग भी जरूर शामिल होते हैं। कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है या आपने ये भी सुना होगा कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है अर्थात संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। अच्छी संगति से इंसान जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसको बर्बाद भी कर सकती है। माता-पिता के साथ-साथ बच्चे पर स्कूली शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई करके उच्च पदों पर पहुंच तो जाता है, लेकिन सही संगति न मिलने के कारण वह तानाशाह बन जाता है। अच्छे काम करके चाहे तो व्यक्ति ऐसा बहुत कुछ कर सकता है, जिससे उसका जीवन सार्थक हो सके, परंतु सदाचरण का पालन न करने से वह खोखला हो जाता है। हो सकता है कि चोरी-बेईमानी आदि करके वह पैसा कमा ले, कुछ समय के लिए दूसरों की नजरों में अच्छा दिख ले, परंतु उसे पता होता है कि उसने क्या किया है।। व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का तो भला होता ही है, साथ ही उसका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। जहां अच्छी संगति व...
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क्या मैं सही हूं?

सलाम दोस्तों! आज बहुत दिनों बाद लिख रही हूँ। आज बात करने वाली हूँ  हमारे फैसलों की जो हमारी जिंदगी पर बहुत असर डालते हैं। जिंदगी में न जाने कितनी बार हम खुद से ये सवाल पूछते हैं कि क्या हम सही है? है न!  तो आइए जानते हैं कि हम कैसे नतीजे पर पहुचें । अगर आप अपनी ज़िंदगी में कामयाब होना चाहते हैं तो आपके अंदर फौरन अपने फैसले लेने की हिम्मत होनी चाहिए। रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं, जब हमें जल्दी ही कोई फैसला करना पड़ता है। ऐसे वक्त पर फैसले का सही या गलत होना उतना मायने नहीं रखता  जितना फैसले का लिया जाना मायने रखता है। अगर आप सही समय पर फैसला नहीं कर पाते हैं तो कई मौके खो बैठते हैं। इसमें दो तरह की संभावनाएं रहती हैं। एक तो यह कि सही फैसला लिए जाने पर आपका फायदा होगा और दूसरा, गलत फैसला लिए जाने पर आपको एक सीख मिलेगी। अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से जीने के लिए फैसले लेने की कला में आपको माहिर बनना होगा। फैसला लेंगे तो जीवन में सफलता जरूर मिलेगी। इसके लिए कुछ इस तरह कोशिश की जा सकती है- •बहुत से लोग किसी भी फैसले को लेने से पहले उसके नतीजों और उससे...

ये कैसी नफ़रत?

सलाम दोस्तों! कई दिनों से एक बात मन ही मन बहुत खटक रही है। आजकल कोरोनाकाल में काफी समय है तो अक्सर सोशल मीडिया पर कुछ समय बीत जाता है और एक चीज़ जो अक्सर मेरे साथ हो रही है वो ये कि बहुत से ऐसे लोग जिनसे मैं कई बार मिली हूं और जो सामाजिक सौहार्द की बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हैं, इतनी कि जिन्हें सुनकर ही आप उनकी बातों के कायल हो जाएं मगर जब वही लोग सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं को लिखते हैं तो किसी धर्म विशेष के बारे में इतनी अपमान जनक टिप्पणियाँ करते हैं कि अगर किसी व्यक्ति की भावनाएँ आहत हो जाएं तो न जाने ये ज़रा सी ज़हरीली बात क्या रूप ले ले।  मैं यहाँ किसी एक धर्म के लोगों की बात नहीं कर रही।हर रोज़ देखती हूं, एक दूसरे को कमेंट्स में नीचा दिखाना,एक दूसरे के धर्म गुरूओं को अनाप-शनाप बोलना, किसी की मान्यताओं को बुरा भला कहना, किसी के त्यौहारों को बुरा भला बताना और भी न जाने क्या क्या। जब ये सब किसी अनजान द्वारा करते देखो तो उतना अचंभा नहीं होता परंतु जब कोई रोज़ का मिलने वाला हो या कभी एकाध बार मिला हो और हम उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए हों तो उनकी ये छोटी सी हरकत उन्...

कोई इन्हें भी तो समझे.....

सलाम दोस्तों! मैं कुछ दिनों पहले एक अधेड़ उम्र के शिक्षक से मिली जो एक निजी संस्थान में करीब दस वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनसे बातचीत करके लगा कि उनकी मनःस्थिति आप सबके साथ साझा की जाए। माफी चाहूंगी क्योंकि मैं जानती हूं कि यह ब्लाग बहुत लोगों के गले से नीचे नहीं उतरेगा। पर क्या करें, लेखक हैं तो अपने विचार अभिव्यक्त तो करेंगे ही । तो दोस्तों, मैं समाज के उस खास वर्ग की बात कर रही हूं जिनसे समाज में तो बड़ा बदलाव आता है लेकिन इनकी भावनाओं की बात कोई नहीं करता अर्थात शिक्षक।  कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी ने 2020 के लिए बनाई गई हर तरह की योजना पर पानी फेर दिया है. मार्च से ही देशभर में बंदी का असर देखा जा रहा है।भारत में परीक्षाओं के महीने मार्च से ही सभी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए थे. चूंकि साल 2020 को जीरो एकैडमिक ईयर घोषित नहीं किया गया था, इसलिए अप्रैल-जुलाई के बीच सभी शिक्षण संस्थानों के लिए पढ़ाई शुरू करवाना अनिवार्य था. लॉकडाउन में पढ़ाई शुरू करवाने का एक ही विकल्प था और वह था ऑनलाइन एजुकेशन।इन दिनों मेट्रो शहरों से लेकर शहरों, देहातों, कस्बों और गांवों तक इसी माध...

ज़िंदगी...

ज़िंदगी.... कुछ लोग अपनी पढाई 24 साल की उम्र में पूरी कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छा काम नहीं मिलती, कुछ लोग 25 साल की उम्र में सफल हो जाते हैे,और 50 साल में कहाँ से कहाँ पहुंच जाते हैं,  जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सफल होते हैं, कुछ 100 साल तक जीते है और कुछ जल्दी ही दुनिया को अलविदा कह जाते हैं,  बेहतरीन नौकरी होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैैं, बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है, कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं, किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कोई ज़िंदगी भर मेहनत ही करता रह गया, इस दुनिया में हर शख़्स का जीवन अलग होता है, ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं, और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं, लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!! *किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..* *अपन...

दोस्ती- एक खूबसूरत एहसास....

सलाम दोस्तों! आज का दिन हमारी पीढ़ी का बहुत ही खास दिन है। मित्रता दिवस! तो आइऐ उसी की कुछ बात करते हैं । दोस्ती, एक सलोना ,सुहाना और हसीन एहसास है, जो दुनिया के हर रिश्ते से अलग है।यह रिश्ता हर किसी के साथ न बनाया जा सकता है, न ही निभाया जा सकता है।  किसी ने क्या खूब कहा है - दोस्ती के लिए कुछ खास दिल मख़्सूस होते है, ये वो नगमा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता…. सच ,दोस्ती पाक दिलों का मिलन होती है। एक बेहद अनोखा एहसास है , जिसे पाते ही सारी उलझनेे सुलझी हुुुई सी दिखाई देती हैं।। परेेेेशानियों की जंजीरें खुल जाती है। दोस्ती एक ऐसा आसमान  है जिसमें प्यार का चांद मुस्कुराता है, रिश्तों की गर्माहट का सूरज चमकता है और खुशियों के नटखट सितारे झिलमिलाते हैं। एक बेशकीमती किताब है दोस्ती, जिसमें लिखा हर अक्षर कीमती और तकदीर बदलने वाला है।  एक नाज़ुक और गुलाबी रिश्ता है दोस्ती, छुई-मुई की नर्म पत्तियों-सा। अंगुली उठाने पर यह रिश्ता कुम्हला जाता है। इसलिए दोस्त बनाने से पहले अपने दिल की आवााज़ सुुुुनना जरूरी है।  सच्चाई,ईमानदारी,प्यार, भरोसा दोस्ती की पहली जरूर...

एक रिश्ता ऐसा भी...

सलाम दोस्तों! आज एक ऐसे विषय पर लिख रही हूँ कि शायद सभी को ऐसा लगे कि ये उनके बारे में ही लिखा गया हो जैसे। दोस्तों मैं चाहूंगी कि ये पढ़ने के बाद आप सभी अपने अनुभव और राय जरूर दें। दोस्तों! बात कुछ ऐसी है कि अचानक किसी का मिल जाना, मिलकर फिर बिछड़ जाना और हज़ारों यादें दे जाना।  पढ़ने में आसान था न? पर असल जिंदगी में बहुत मुश्किल है इन दो वाक्यों के बीच की दूरी तय कर पाना। जि़दगी के उस मोड़ पर जहाँ हम अकेले सब खुद कर सकते हैं तब हमें कोई मिल जाता है। न! लड़कियों ये मत सोचना कि किसी लड़के की ही बात कर रही हूँ और लड़को ये मत सोचना कि किसी लड़की की ही बात कर रही हूँ। वो कोई भी हो सकता है। कोई दोस्त, सहपाठी, या फिर कोई अनजान ही। हमें जीवन में अक्सर जब हम अकेले ही मस्ती से जी रहे होते हैं तब कोई आकर हमे अपनी आदत  डाल देता है। हम हर एक बात के लिए उस पर निर्भर हो  जाते हैं। हमारे खान-पान से लेकर हम कहाँ जाते हैं, किससे मिलते हैं, सब कुछ उन्हें पता होता है। और तो और हमारी पसंद-नापसन्द भी बदल जाती है। (कुछ लोग इसे बर्बाद होना भी कहते हैं) मगर फिर भी हम खुशी खुशी बदल ज...

तोल मोल के बोल

सलाम दोस्तों! आज मैं अपने ही अनुभव से एक विषय पर लिखने जा रही हूँ। विषय आप ऊपर देखकर समझ ही होंगे- तोल मोल के बोल अर्थात जो बोल रहे हैं उन शब्दों का चुनाव सोच समझ कर करें। कई बार हमारी कही हुई एक छोटी सी बात किसी का दिल दुखा देती है। पहले सोचो फिर बोलो। यह कहावत हमारी भलाई के लिए ही कही गई है इसीलिए जो भी बोलें, सोच समझकर बोलें। अक्सर हम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं जोकि हमें नहीं करने चाहिए क्योंकि एक बार जो शब्द जुबान से निकल गया, वह वापस नहीं लाया जा सकता और इसमें नुकसान हमारा ही है। हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें जो किसी को तकलीफ दें।जैसे कम़ान से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता, जैसे काेई पत्ता पेड़ से टूटने के बाद वापिस जुड़ नहीं सकता। ठीक वैसे ही मुँह से निकली हुई बात काे भी वापिस नहीं लिया जा सकता है, कई बार हम बोलते कुछ हैंं और सामने वाला समझ कुछ और जाता है, इसका कारण है हमारे शब्द। जो भी कहें,साफ शब्दों में कहेें।जो बात हमने बाेल दी वाे न ताे वापिस हाे सकती है, न बदली जा सकती है। एक बार आपकी बात से किसी का मन दु:खित हाे गया तब आप लाख उसे सुधारना चा...

फादर्स डे

मुझे रख दिया छांव में, खुद जलते रहे धूप में,  मैंने देखा है ऐसा एक फरिश्ता, अपने पिता के रूप में। ये पंक्तियां जाने कहाँ सुनी थी ये तो याद नहीं, पर इतना कह सकती हूँ कि हैं एकदम सही। सलाम दोस्तों। वैसे  तो हमारे समाज में माँ-बाप का स्थान पहले ही सबसे ऊंचा रहा है, परन्तु आजकल वैश्वीकरण के चलते  हम विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दिवसों को भी ख़ुशी-ख़ुशी मनाते हैं।इसी लिहाज़ से प्रत्येक वर्ष जून के तीसरे रविवार को 'इंटरनेशनल फादर्स डे' ( International father's day ) का दिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. क्या आप जानते हैं कि इस दिन  की शुरुआत कैसे हुई??? नहीं? चलिए मैं बताती हूँ।   इस दिन को मनाने के लिए एक बेटी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। दरअसल, 1909 में सोनोरा लुईश स्मार्ट डॉड (Sonora Louise Smart Dodd) नाम की एक 16 साल की लड़की ने पिता के नाम इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। सोनोरा, जब 16 साल की थी तब उसकी मां उसे और उसके 5 छोटे भाइयों को छोड़कर चली गईं थी। सोनोरा के पिता ने पूरे घर और बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।एक दिन सोनोरा ने 1909 में मदर्स डे के बार...

आखि़र क्यूँ?

आए दिन अखबार के किसी कोने में देखने को मिल रहे है। कभी किसी ने परीक्षा मे फेल होने पर फांसी लगाई तो किसी ने प्यार में नाकाम होने पर किसी ने खुद को आग के हवाले कर दिया। आजकल युवाओं के भीतर सहनशक्ति में भी अत्याधिक कमी देखी जा रही है. वर्तमान समय में लगभग सभी ओर प्रतिस्पर्धा हावी हो चुकी है, जिनमें असफलता व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देती है। ज़ाहिर है कोई व्यक्ति अपने सुनहरे सपनों और बहुमूल्य जीवन का अंत खुशी से नहीं करेगा. अगर वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं तो इसके पीछे उनकी कोई बहुत बड़ी मजबूरी  होती है. आधुनिक भागदौड के इस जीवन में कभी न कभी हर व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो ही जाता है। डिप्रेशन आज इतना आम हो चुका है कि लोग इसे बीमारी के तौर पर नहीं लेते और नजरअंदाज कर देते हैं। किन्तु ऎसा करने का परिणाम कभी कभी बहुत ही बुरा हो सकता है।काम की भागदौड़ में कई बार इंसान डिप्रेशन का शिकार हो जाता है यानी वह मानसिक अवसाद में आ जाता है। कई बार डिप्रेशन इतना अधिक बड़ जाता है कि व्यक्ति कुछ समय के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता है। पहले यह माना जाता था कि पारिवारिक...